Best Ayurvedic treatment for diabetes?

डायबिटीज को मधुमेह भी कहते हैं। संसार में करोडो लोग डायबिटीज से पीड़ित है जो एक चिंता का विषय है। डायबिटीज एक बहुत भयानक बीमारी है एक बार अगर यह बीमारी किसी को हो जाए तो उम्र भर उस व्यक्ति का साथ नहीं छोड़ती। चाहे पुरुष हो या स्त्री या बच्चे हो या बूढ़े सभी पर डायबिटीज अपना अलग अलग प्रभाव डालती है। डायबिटीज मुख्यतया आनुवांशिक या अनियमित जीवन शैली की वजह से होती है आज डायबिटीज टच के इस लेख में हम जानेंगे कि डायबिटीज क्या है , क्यों होती है , डायबिटीज कितने प्रकार की होती है और इससे नुकसान क्या है ? उनका घरेलू उपचार क्या हो सकता है ? इसलिए इस लेख को पूरा जरूर पढ़ें क्योंकि अधूरी जानकारी सेहत के लिए खतरनाक हो सकती है।
मधुमेह किसी भी उम्र में किसी को भी हो सकता है, हम गलती से भी यह नहीं मान सकते कि जीवन के विभिन्न चरणों में हमें मधुमेह नहीं होगा, मधुमेह के अपने खतरे हैं, चाहे वह महिला हो या पुरुष और बूढ़ा हो या बच्चा, मधुमेह के प्रभाव सभी पर होते हैं। यहां आपको इस बारे में जानकारी मिलेगी । अक्सर, रोगी भ्रमित होता है कि उसे किस प्रकार का मधुमेह है। जैसे ही बीमारी का पता चलता है, रोगी अवसाद का शिकार हो जाता है। डायबिटीज के विभिन्न प्रकारों में अलग-अलग सावधानियां हैं, यदि मरीज को पता चल जाए कि उसे किस प्रकार का डायबिटीज है फिर इलाज करना आसान हो जाता है। यह जानना बहुत महत्वपूर्ण है कि इंसुलिन कहां स्रावित होता है, इस हार्मोन का कार्य क्या है, जिसके लिए इंसुलिन दिया जाता है, इंसुलिन की मात्रा का निर्धारण कैसे किया जाए, रोगी को कितना इंसुलिन दिया जाना चाहिए। जिनको इंसुलिन कम बनता है। उनके साथ अलग तरह से इलाज किया जाता है और जो इंसुलिन का उत्पादन नहीं करते हैं, उनके साथ अलग तरह से इलाज किया जाता है। कुछ मधुमेह रोगियों में इन्सुलिन बनता तो है लेकिन शरीर की कोशिकाएं इन्सुलिन के लिए प्रतिरोधी हो जाती हैं , ऐसे में मधुमेह रोगियों को अपने रोग के बारे में पूरी जानकारी रखना जरुरी हो जाता है ।
आज संसार में करोड़ों लोग डायबिटीज की समस्या से परेशान है। डायबिटीज को आमतौर से शुगर कहा जाता है। डायबिटीज के मरीज के खून में शुगर की मात्रा सामान्य स्तर से अधिक हो जाती है।
शरीर में इंसुलिन एक ऐसा हार्मोन होता है जो ग्लूकोज को ऊर्जा में बदलता है।
डायबिटीज से पीड़ित रोगी के शरीर में पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बन पाता। अगर बनता भी है तो इंसुलिन पूरी तरह से काम नहीं करता जिसके कारण शरीर की कोशिकाएं शुगर का अवशोषण नहीं कर पाती हैं। और परिणाम स्वरूप रोगी के खून में शुगर की मात्रा का स्तर बढ़ जाता है। जिसे डायबिटीज कहते हैं।
आपको कौन सी डायबिटीज है ?
डायबिटीज टाइप -1 डायबिटीज टाइप-2
प्री डायबिटीज जेस्टेशनल डायबिटीज
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टाइप 1 डायबिटीज
टाइप 1 डायबिटीज का सटीक कारण का पता नहीं है लेकिन या तो टाइप 1 डायबिटीज आनुवंशिक होती है या फिर प्रतिरक्षा तंत्र की गड़बड़ी की वजह से टाइप 1 होती हैं।
डायबिटीज टाइप 1 में रोगी का प्रतिरक्षा तंत्र अग्न्याशय की बीटा सेल्स पर हमला करके उन्हें नष्ट करती है। जिसके कारण पैंक्रियास की बीटा सेल आवश्यक इंसुलिन पैदा नहीं कर पाती। परिणाम स्वरूप इंसुलिन की कमी से ग्लूकोस कोशिका में जाने के बजाय खून में अपनी मात्रा बढ़ाने लगता है। इस अवस्था को हाइपर ग्लाइसिमिया कहते हैं और परिणाम स्वरूप शरीर ग्लूकोज को ऊर्जा में नहीं बदल पाता और डायबिटीज टाइप 1 हो जाती है ।
डायबिटीज टाइप 1 किसी भी उम्र में हो सकती हैं लेकिन ज्यादातर बच्चों को और जवानों में यह बीमारी पाई जाती हैं।डायबिटीज टाइप 1 में रोगी का इलाज खाने की गोलियों से संभव नहीं है। डायबिटीज टाइप 1को अपने नियंत्रण में रखने के लिए इंसुलिन की जरूरत पड़ती है। इंसुलिन को इंजेक्शन के द्वारा रोगी को दिया जाता है। यदि इन समय पर ना दिया जाए रोगी को जान का खतरा होता है।
टाइप 2 डायबिटीज
टाइप 2 डायबिटीज एक मेटाबॉलिक डिसार्डर है। टाइप 2 डायबिटीज अधिकतर 40 वर्ष या उससे अधिक की आयु के लोगों में पाई जाती हैं। पर कभी-कभी या जल्दी भी हो सकती है। टाइप 2 डायबिटीज दो स्थितियों में होती है।
1- शुगर को सामान्य स्तर पर बनाये रखने के लिए जब इंसुलिन पर्याप्त मात्रा में न बन रही हो।
2- शरीर में इंसुलिन तो पर्याप्त मात्रा में बनता है लेकिन शरीर इंसुलिन का समुचित प्रयोग नही कर पाता है। इस स्थिति को इंसुलिन प्रतिरोध कहा जाता है।
मोटापे के पारिवारिक इतिहास वाले लोग डायबिटीज टाइप 2 के खतरे में है।
जो लोग मोटे होते हैं और उनका वजन असामान्य रूप से बढ़ रहा है उनके शरीर मे शुगर के स्तर को सामान्य बनाये रखने के लिए इंसुलिन की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।
प्री डायबिटीज
प्रीडायबिटीज वह अवस्था होती है। जिसमें ग्लूकोस का लेवल खून में बढ़ा हुआ होता है लेकिन इतना ज्यादा नहीं होता कि उसे डायबिटीज कहा जाए। मगर प्रीडायबिटीज को गंभीरता से ना लिया गया तो डायबिटीज हो जाने की संभावना प्रबल हो जाती है। अगर प्रीडायबिटीज अवस्था में यदि रोगी गंभीरता से इस अवस्था को लेता है। तो वो डायबिटीज से बच सकता है। प्रीडायबिटीज की समस्या यूं तो सभी को हो सकती है। लेकिन ज्यादातर 40 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों को होती है अगर आपका बीएमआई 25 से ज्यादा है तो भी प्रीडायबिटीज की संभावना बढ़ जाती हैं। साथ ही साथ वह लोग जो कोई शारीरिक श्रम नहीं करते, वह भी प्रीडायबिटीज के शिकार हो सकते हैं। जब आप डॉक्टर के पास जाते हैं तो डॉक्टर आपको ब्लड टेस्ट की सलाह देते हैं। जिसमे आपको एक ही दिन में दो बार ब्लड टेस्ट करवाना होता है। एक बिना कुछ खाए-पीए और दूसरा खाना खाने के दो घंटे बाद ।
जेस्टेशनल डायबिटीज (गर्भावधि मधुमेह)
जेस्टेशनल डायबिटीज महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान होती हैं जब महिला गर्भवती होती है तो महिला का शरीर अतिरिक्त इंसुलिन बनाता है। अतिरिक्त इंसुलिन की जरूरत इसलिए होती है क्योंकि प्लेसेंटा के हार्मोन इंसुलिन हार्मोन को शरीर के लिए कम प्रतिक्रियाशील कर देते हैं। इस कारण शुगर का लेवल बढ़ता जाता है जो जेस्टेशनल डायबिटीज उत्पन्न हो जाती है।
इसके कारण कुछ इस प्रकार हैं ।
अगर 4 किलो से अधिक वजन वाले बच्चे को जन्म दिया हो।
अगर किसी महिला के परिवार में किसी को मधुमेह रहा हो।
अगर किसी महिला को हाई बीपी की समस्या रही हो।
अगर गर्भावस्था के दौरान गर्भवती का वजन अधिक रहा हो।
गर्भावस्था के दौरान अगर उम्र 25 साल से ज्यादा है।
गर्भावस्था के पहले वजन ज्यादा रहा हो।
पहले कभी गर्भपात हुआ हो।
पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम हो (Polycystic Ovary Syndrome)
बहुत अधिक एमनियोटिक द्रव हो।
हमें डायबिटीज क्यों हो जाता है ?
मोटापा कई बिमारियों को जन्म देता है इसमे से एक डायबिटीज भी है , इसलिए सभी के लिए जरुरी है कि अपने शरीर पर मोटापा न आने दें। अपने मोटापे पर नियंत्रण जरूरी है।
खराब पोषण से डायबिटीज टाइप 2 हो सकता है, जो व्यक्ति चीनी या गुड से बनी मिठाई,जंक फ़ूड , फ़ास्ट फ़ूड , कोल्ड ड्रिंक्स आदि का सेवन अनियमित रूप से करते हैं इस रोग के शिकार हो जाते हैं। क्योंकि जब आप ज्यादा मीठी चीजों का सेवन करते हैं तो शरीर में ग्लूकोस की मात्रा बढ़ने लगती है।
अग्न्याशय में गडबड़ी के कारण इन्सुलिन की मात्रा कम होने लगती है जिस कारण ग्लूकोस मेटाबोलिज्म में समस्या आने लगती है जिस कारण डायबिटीज रोग उत्पन्न हो जाता है।
तनाव का डायबिटीज में एक महत्पूर्ण भूमिका है अगर आप तनाव से ग्रसित हैं तो ये रोग आप को हो सकता है तो जितना हो सके तनाव से मुक्त रहें।
शरीरिक श्रम न करना , दिन भर एक जगह बैठ कर काम करना डायबिटीज के जोखिम को बढ़ा देते हैं।
अगर माता-पिता को डायबिटीज की शिकायत है तो होने वाले बच्चों को डायबिटीज की शिकायत की प्रबल संभावना अधिक होती है।
धूम्रपान करना, शराब पीना, और आदि नशीले पदार्थों का सेवन करने से भी डायबिटीज को जन्म देता है।
डायबिटीज के लक्षण
डायबिटीज को साइलेंट किलर भी कहते हैं क्योंकि बहुत बार इसके लक्षण साफ़ नहीं होते या समझ नही आते और जो थोड़ी बहुत दिक्कत होती भी है तो रोगी उसे गम्भीरता से लेता नहीं है, और जब तक पता चलता है तब तक बीमारी बहुत अधिक नुक्सान कर देती है। लेकिन आप ऐसा मत करिए, इन लक्षणों में से अगर एक भी आपको महसूस हो रहा है तो जल्दी से जल्दी अपने ब्लड शुगर की जांच कराइए ।
अचानक से वजन बढ़ना या वजन कम होना
अधिक पेशाब और प्यास लगना
अधिक भूख और अधिक थकान
घाव का देरी से भरना , मसूड़ों में घाव व सूजन
धुंधली दृष्टि
मतली और उल्टी व् मुंह सूखना
यीस्ट या फंगल इन्फेक्शन और खुजली होना
हाथ पैर में झुनझुनी होना / हाथ-पाँव सुन्न पड़ना
डायबिटीज में क्या खाना चाहिए ?
चलो अब जानने की कोशिश करते हैं कि डायबिटीज वाले रोगियों के भोजन में क्या क्या शामिल होना चाहिए। मोटा अनाज,अंकुरित दालें कच्ची सब्जियां जैसे मूली खीरा, ककड़ी, प्याज, टमाटर, मटर, बिना मलाई वाला दूध , दही और हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक धनिया, मेथी, बैंगन, फूलगोभी, पत्तागोभी, मीठे फल और खट्टे मौसमी फल लेकिन सावधानी से तय मात्रा में खाना चाहिए। नींबू पानी, नारियल पानी और सतू का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। ओमेगा 3 फैटी एसिड के लिए मछलियां व दही का प्रयोग कर सकते हैं। गेहूं के आटे में बेसन मिलाकर बनी रोटियां खा सकते हैं। गेहूं के आटे में चने और सोयाबीन को मिलाकर बनी रोटियां को हम खा सकते हैं।
मूली (Radish) बंद गोभी (Cabbage)
फूल गोभी (Cauliflower) खीरा (Cucumber)
शिमला मिर्च (Capsicum) गाजर (Carrots)

ब्रोकली (Broccoli) छिलके वाली दाल
चिया सीड्स (Chia Seeds)

सोयाबीन (Soybean) अंकुरित किए हुए चने ( Sprouted gram )
ब्राउन राइस (Brown Rice) चोकर मिला हुआ आटा (Bran)

सरसों का साग (Mustard Greens) मेथी (Fenugreek)
पालक (Spinach) सूरजमुखी के बीज (Sunflower Seeds)
सरसों व सोयाबीन का तेल (Mustard & Soybean oil) साबुत अनाज (Whole Grains)

स्ट्रॉबेरीज (Strawberries) गेहूं का आटा (Wheat Flour)
शलजम (Turnip) कद्दू (Pumpkin)

ककड़ी (Armenian Cucumber टमाटर (Tomatoes)
करेला (Bitter Gourd)
डायबिटीज में क्या नहीं खाना चाहिए ?
डायबिटीज वाले रोगियों को कैंडी, आइसक्रीम, मिठाई , मीठा शरबत , सोडा वाटर, शिकंजी या अधिक ऊर्जा वाले ड्रिंक्स और वसायुक्त भोजन से परहेज करना चाहिए। शराब का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए। जड़ कंद वाली सब्जियां जैसे आलू, शकरकंद, शलजम, जिमीकंद और चुकंदर का सेवन नहीं करना चाहिए। मलाई वाला दूध क्रीम मक्खन जैसी वनस्पति घी, अंडे का पीला भाग , लाल मांस को खाना बंद कर देना चाहिए
डायबिटीज के रोगियों को अधिक कार्बोहायड्रेट वाले फ़ूड बिलकुल लेना बंद कर देना चाहिए , इसमें आलू और शकरकंद जैसे फ़ूड शामिल हैं
डायबिटीज के रोगियों को मिठाईयां खाने से परहेज करना है , चीनी से बनी मिठाई , शरबत . कोल्ड ड्रिंक्स बिलकुल बंद कर देना है
डायबिटीज के रोगियों को अपने खाने में सेंधा नमक का इस्तेमाल नियमित मात्र में करना है जबकि सफेद नमक प्रयोग बंद कर देना चाहिए
अधिक वसा / फैट वाले डेयरी प्रोडक्ट्स जैसे दूध की क्रीम आदि का इस्तेमाल बिलकुल बंद कर देना है
बाज़ार के जंक फ़ूड और फ़ास्ट फ़ूड , समोसे, तला-भुना फ़ूड बिलकुल बंद करना होगा पेस्ट्रीज केक और आइसक्रीम को भी नही लेना है
सफेद चावल में कार्बोहायड्रेट अधिक होता है इसके स्थान पैर डायबिटीज रोगी ब्राउन राइस ले सकते हैं जो बहुत ही गुणकारी है
डायबिटीज रोगियों को फलों का जूस बहुत सावधानी से लेना है क्योंकि फल कार्बोहाइड्रेट्स का अछे स्रोत हैं जो की डायबिटीज रोगियों के लिए समस्या पैदा कर सकते हैं
मैदा और मैदा से बने फ़ूड मटेरियल जैसे नूडल्स ,पिज्जा , व् मैदा वाली रोटियां डायबिटीज रोगियों के लिए नुकसान दायक हैं इन्हे लेना नही चाहिए
डायबिटीज को कैसे नियंत्रित किया जाये ?
डायबिटीज के रोगी को अपने वजन को संतुलित रखने में बहुत ही मुश्किल होता है क्योंकि बहुत भूख लगती है। डायबिटीज के डाइट चार्ट में हमें ऐसे खाद्य पदार्थों का चयन करना चाहिए जो स्वास्थ्यवर्धक हों।
डायबिटीज रोगी को अपना शुगर लेवल नियंत्रित करने के लिए अपने डाइट चार्ट में किसी भी खाद्य पदार्थ को शामिल करने से पहले उसके ग्लाइसेमिक इंडेक्स के बारे में भी जरूर जाना चाहिए।
डायबिटीज रोग का पता चल जाने के बाद रोगी शुगर को कंट्रोल करने के लिए घरेलू नुस्खे आजमाता है। केवल प्रीडायबिटीज में ही सही जीवन शैली व खानपान तथा घरेलू इलाज से ग्लूकोस साधारण स्तर पर आ सकता है। लेकिन डायबिटीज में घरेलू उपचार डायबिटीज के लिए ज्यादा फायदेमंद नहीं होता, केवल डायबिटीज रोगी अपना समय खराब करते हैं और रोग बढता जाता है। इसलिए जैसे ही डायबिटीज रोग का पता चले अपने डॉक्टर से चिकित्सा में देरी बिल्कुल ना करें।
जैसे ही डायबिटीज होने का पता चले अपने डॉक्टर के सलाह से डाइट चार्ट बनवाएं और उसी अनुरूप अपनी डाइट लें।
जैसे ही पता चले कि डायबिटीज रोग आपको हो गया है तो अपने ग्लूकोस लेवल पर नजर रखने के लिए एक अच्छा ग्लूकोमीटर ले लेना चाहिए।
रोज कम से कम 30 मिनट नियमित रूप से डायबिटीज रोगी को टहलना शुरू करना चाहिए। टहलने में ध्यान रखना है कि पैरों को कोई हानि न पहुंचे।
डायबिटीज में भूख बहुत लगती है इसलिए अपने खाने पर नियंत्रण रखें। इसके लिए अपना खाना थोड़ा थोड़ा कम करें और वेट कंट्रोल करें।
डायबिटीज का पता लगने पर डॉक्टर आपको एंटी-डायबिटिक मेडिसिन या इंसुलिन इंजेक्शन देता है जिसको डॉक्टर के सलाह पर सावधानी से लेना शुरू कर देना चाहिए।
डायबिटीज रोगी को साबुत अनाज से बने पौष्टिक आहार अपने डाइट में शामिल करना चाहिए।
डायबिटीज केवल सुगर कंट्रोल से ही नियंत्रण में रह सकती है, लेकिन यह रोग जड़ से खत्म नहीं होता। इससे पहले कि डायबिटीज के लक्षण और बढ़ जाएं। अपने डॉक्टर से जल्द जल्दी चला लेकर चिकित्सा प्रारंभ कर देनी चाहिए।
नियमित स्वास्थ्य जाँच
धूम्रपान न करें
मेडिटेशन करें
भरपूर नीद लेनी चहिये
तनाव से मुक्त रहें
चलो सीखते हैं कि की अगर डायबिटीज हो तो उसका इलाज किस तरह किया जाये
डायबिटीज बहुत खतरनाक बीमारी है इसका इलाज जितना जरुरी है उतना ही जरुरी ये है कि डायबिटीज के कारणों को समझा जाये ।
डायबिटीज एक ऐसा रोग है जिसे पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता । कुछ दवाइयों की मदद से और नियमित देखभाल से इसे नियंत्रित अवश्य किया जा सकता है तो आइए इसके बारे में जानते है कि कौन सी डायबिटीज में कौन सी दवाएँ और कौन सी देखभाल की जरुरत पड़ेगी । डायबिटीज टाइप 1 और डायबिटीज टाइप 2 का इलाज करने में इलाज का लक्ष्य ये होता है की शरीर के खून का ग्लूकोज स्तर सामान्य स्तर तक पहुँच जाये ।
डायबिटीज का आयुर्वेदिक उपचार
डायबिटीज एक पुराना चयापचयी विकार है। आज का आयुर्वेदिक उपचार आधुनिक चिकित्सा से बहुत अलग है।
आयुर्वेद सिर्फ शुगर लेवल को ही सामान्य नहीं रखता बल्कि रोगी के जीवन में सकारात्मक बदलाव भी करता है, फलस्वरूप रोगी का शरीर स्वस्थ हो जाता है। आयुर्वेद रोग के मूल कारण पर असर करती है और पाचन शक्ति बढ़ाने के साथ साथ रोग प्रतिरोधक शक्ति भी विकसित होती है। डायबिटीज के लिए चरक संहिता में माना गया है कि डायबिटीज तो 3000 साल पहले से भी थी, लेकिन यह केवल राजाओं और धनवानो को ही होती थी क्योंकि उनका खानपान राजसी होता था और काम कुछ करते नहीं थे,सिर्फ आराम करते थे। आचार्य चरक के अनुसार डायबिटीज दो तरह का होता है एक मोटे लोगों को दूसरा पतले लोगों को।
मोटे लोगों को जो डायबिटीज होता है उसे स्थूल मधुमेही और पतले लोगों को होने वाली डायबिटीज को कृश मधुमेही कहते हैं। चरक संहिता में स्थूल मधुमेही का मुख्य कारण चिकनाई भोजन की अधिकता। और कृश मधुमेही का मुख्य कारण धातु क्षय को माना गया है। स्थूल मधुमेही में रोगी को पोषण युक्त वह हल्का भोजन देना चाहिए। जब कि कृश मधुमेही में ओजवर्धक, बलवर्धक और वात नाशक भोज्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
ब्लड शुगर चार्ट Blood Sugar In Fasting
Normal 70-99 mg/dl
Pre Diabetes 100 -125 mg/dl
Diabetes Type 2 126 mg/dl or Higher
Blood Sugar after 2 hours Meal
Normal Less Than 140 mg/dl
Pre Diabetes 140-199 mg/dl
Diabetes Type 2 200 mg/dl or Higher
HbA1c test
Normal 4 % – 5.6 %
Pre Diabetes 5.7 % – 6.4 %
Diabetes Type 2 6.5 % or Higher
क्या डायबिटीज रिवर्स हो सकती है ?
वे लोग जिनका HBA1c 42 mmol/mol (4 %) बिना किसी इलाज के अगर हो जाये तो ये कहा जाता है की डायबिटीज रिवर्स हो गयी है , डायबिटीज नियन्त्रण के लिए कुछ प्रभावी तरीके हैं जो रिवर्स डायबिटीज के लिए जरुरी समझे जाते हैं । Weight Loss डायबिटीज नियन्त्रण के लिए महत्वपुर्ण भूमिका निभाता है , धैर्य समय और समर्पण इच्छा शक्ति डायबिटीज रोगियों को जल्दी ही उन्हें वापस सामान्य अवस्था में ला सकता है

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